नदी की आत्मकथा: Nadi ki Atmakatha in Hindi

Nadi ki Atmakatha in Hindi: मैं एक नदी हूँ। मेरी कहानी बहुत पुरानी और गहरी है। मेरा जन्म पहाड़ों से हुआ, जहाँ मैं एक नन्ही धारा थी। धीरे-धीरे मैं बढ़ती गई और एक विशाल नदी बन गई। मैं अपनी धारा में कूदती-फांदती, उछलती हुई पहाड़ों से मैदानी इलाकों तक पहुँची। मेरी यात्रा सरल नहीं थी, कई बार रास्ते में चट्टानें आईं, कभी तेज धूप ने मुझे सूखा दिया, लेकिन फिर भी मैं आगे बढ़ती रही। यह मेरी जीवन की आत्मकथा है, एक नदी की आत्मकथा।

मेरे जल में जीवन की धारा है। जब मैं पहाड़ों से नीचे उतरती हूँ, तब पेड़-पौधे, पक्षी, जानवर और इंसान सभी मुझसे जीवन प्राप्त करते हैं। मेरे किनारे पर बसे गाँव, शहर, खेत मेरे पानी से हरे-भरे रहते हैं। जब मैं सूखी होती हूँ, तो किसान दुखी होते हैं, क्योंकि उनके खेत प्यासे रहते हैं। और जब मैं बाढ़ के रूप में आती हूँ, तो लोगों के घर बह जाते हैं। मेरी यही विडंबना है – मैं कभी जीवन देती हूँ और कभी जीवन के लिए खतरा बन जाती हूँ।

नदी की आत्मकथा निबंध हिंदी में

पुराने समय की बात करें, तो मेरे किनारे सभ्यताएँ बसीं। मैं भारत की पुरानी नदियों में से एक हूँ। लोग मेरे किनारे आकर बसते थे, पूजा करते थे, और मेरा पानी पीकर जीवन जीते थे। मेरे पास आने वाले ऋषि-मुनि तपस्या करते थे। मैं अपने स्वच्छ जल से सभी को जीवन देती थी। लोग मुझे माँ की तरह पूजते थे, मेरे बिना जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते थे।

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लेकिन अब मेरा हाल बुरा है। पहले मेरा पानी साफ था, अब वह गंदा हो गया है। इंसानों ने मेरी धारा में कारखानों का कचरा डाल दिया है। शहरों का गंदा पानी मुझमें बहा दिया जाता है। अब लोग मुझे उतना सम्मान नहीं देते, जितना पहले दिया करते थे। मेरा पानी जो कभी जीवन देता था, अब बीमारी फैलाने लगा है। मेरे किनारे जहाँ हरियाली थी, अब कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। मेरी धारा कम होती जा रही है, और गर्मियों में मैं पूरी तरह सूख जाती हूँ।

मैं यह सोचती हूँ कि मेरा भविष्य क्या होगा? क्या मैं फिर से वैसी नदी बन पाऊँगी, जैसी पहले थी? क्या लोग मुझे फिर से साफ और पवित्र करेंगे? या फिर मैं एक दिन पूरी तरह से सूख जाऊँगी और मेरी आत्मकथा खत्म हो जाएगी?

निष्कर्ष: Nadi ki Atmakatha in Hindi

लेकिन मैं आशावादी हूँ। मैं जानती हूँ कि एक दिन लोग समझेंगे कि मैं कितनी महत्वपूर्ण हूँ। वे मुझे साफ करेंगे, मेरे जल को बचाएँगे, और फिर से मेरे किनारे हरियाली लौटेगी। खेतों में फसलें लहराएंगी, बच्चे मेरे किनारे खेलेंगे, और मेरी धारा फिर से गीत गाएगी। यही मेरी सबसे बड़ी इच्छा है, यही मेरी आत्मकथा का अंत होगा – एक खुशहाल और जीवनदायिनी नदी का पुनर्जन्म।